Page 300 - Kailaspati: Paramhans Hansdevji Avadhoot
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Kailashpati
॥ॐ हरिहि ॥
श्ी हंसदेवजी की आिती
आिती हंसदेवजी की, किेंगे जयजय हरिहिकी काततजिकी पूिम ददि आया, तवश्वमाललक िे जिम ललया, चाँद हँस हँस के देख िहा बिसती धािा अमृतकी...
बिस तेिह से छधोडा घि, तप द्कया जंगल में जाकि, ज्ञाि-अिुभव गुरु से पाकि, बिी छतव ही खुद ईश्विकी...
मधुिता बािी में िहती, हमेशा हँसी मुखपे दीखती, देख के उन्ें शांतत समलती, वे मूित है सब सद्गुणकी...
त्याग में हहत है जीविका, भधोग से पािा है दुःखका, िाम बस जपिा हरिहिका, किावे प्रानति ईश्विकी...
यज्ञ महारूद् किािे कधो, प्रेिणा हुई जब स्वामीकधो, देि लगी िा तैयािीकधो, बडी ईच्छा है संतिकी, वंदिा हम सब भकतयोंकी...